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ACS Gland & Acupressure - Dr. Saxena Book - Hindi

MRP : 90 / 2

Product Details

Instrument Code
417
Width
14 cm
Length
22 cm
Height
1 cm
Weight
200 kg
Stock
0
QTY in Per Box
0
Quantity

Product Description

अंतःस्रावी तंत्रअंत:स्रावी तंत्र छोटे अंगों की एक एकीकृत प्रणाली है जिससे बाह्यकोशीय संकेतन अणुओं HARMONE का स्राव होता है। अंत:स्रावी तंत्र शरीर के चयापचय, विकास, यौवन, ऊतक क्रियाएं और चित्त (मूड) के लिए उत्तरदायी है।

 

Picture of the Endocrine System
 

 

अन्त:श्रावी ग्रन्थिया

इन अंतःस्रावी ग्रंथियों को पहले एक-दूसरे से पृथक् समझा जाता था, किंतु अब ज्ञात हुआ है कि ये सब एक-दूसरे से संबद्ध हैं और पीयूषिका ग्रंथि तथा मस्तिष्क का मैलेमस भाग उनका संबंध स्थापित करते हैं। अतः MASHTISHK   ही अंतःस्रावी तंत्र का केंद्र है।

शरीर में निम्नलिखित मुख्य अंतःस्रावी ग्रंथियाँ हैं: पीयूषिका (पिट्यूटैरी), अधिवृक्क (ऐड्रोनल), अवटुका (थाइरॉइड), उपावटुका (पैराथाइरॉयड), अंडग्रंथि (टेस्टीज), डिंबग्रंथि (ओवैरी), पिनियल, लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँ और थाइमस।

पीयूषिका

मनुष्य के शरीर में यह एक मटर के समान ग्रंथि मस्तिष्क के अग्र भाग के नल से एक वृंत (डंठल) सरीखे भाग द्वारा लगी और नीचे को लटकती रहती है। इसमें तीन भाग हैं- अग्रिम, मध्य और पश्च खंडिकाएँ (लोब)। अग्रिम खंडिका में बनने वाले हारमोनों के नाम ये हैं:

(1) बीज-पुटक-उत्तेजक (एफ.एस.एस.),

(2) ल्यूटीनाकरक (एल.एस.),

(3) अधिवृक्क-प्रांतस्था-पोषक (ए.सी.टी.एच.),

(4) अवटुकापोषक (टी.एच.),

(5) वर्धक (शोथ हारमोन)।

मध्यखंडिका मध्यनी (इंटर मिडिल) हारमोन बनाती है। पश्चखंडिका पिट्यूटरीन हारमोन बनाती है। इसमें दो हारमोन होते हैं। एक गर्भाशय का संकोच बढ़ाता है और दूसरे से रक्तवाहिनियाँ संकुचित होती हैं। यदि इस ग्रंथि की क्रिया बढ़ जाती है तो प्रजनन अंगों की अत्यंत वृद्धि होती है और यदि शरीर का वृद्धिकाल समाप्त नहीं हो चुका रहता है तो दीर्घकायता उत्पन्न हो जाती है जिसमें शरीर की अतिवृद्धि होती है। परंतु यदि वृद्धिकाल समाप्त हो चुका रहता है यो पीयूषिका की अतिशय क्रियाशीलता का परिणाम ऐक्रोमेगैली नामक दशा होती है, जिसमें मुख अँगुलियों, कंठ आदि में सूजन आ जाती है।

अग्रिम खंडिका के अर्बुद (ट्यूमर) से कशिंग का रोग उत्पन्न होता है। पीयूषिका के क्रियाह्रास से मैथुनी असमर्थता, शिशुता (इनफैंटाइलिज्म), शरीर में वसा की अतिवृद्धि तथा मूत्रबाहुल्य, ये सब दशाएँ उत्पन्न होती हैं। पूर्व खंडिका की क्रिया के अत्यंत ह्रास से रोगी कृश हो जाता है और मैथुन शक्ति नष्ट है जाती है। इसे साइमंड का रोग कहते हो

अधिवृक्क (ऐड्रिनल्स

ये दो त्रिकोणाकार ग्रंथियाँ हैं जो उदर के भीतर दाहिनी ओर या बाएँ वृक्क के ऊपरी गोल सिरे पर मुर्गे के कलगी की भाँति स्थिर रहती हैं। ग्रंथि में दो भाग होते हैं, एक बाहर का भाग, जो बहिस्था (कॉर्टेक्स) कहलाता है और दूसरा इसके भीतर का अंतस्था (मैडुला)। बहिस्था भाग जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है। लगभग दो दर्जन रासायनिक पदार्थ (रवेदार स्टिअराइड), इस भाग से पृथक् किए जा चुके हैं। उनमें से कुछ ही शारीरिक क्रियाओं से संबद्ध पाए गए हैं। बहिस्था भाग का विद्युद्विश्लेष्यों (इलेक्ट्रोलाइट्स) के चयापचय और कारबोहाइड्रेट के चयापचय से घनिष्ठ संबंध है। वृक्कों की क्रिया, शारीरिक वृद्धि, सहन शक्ति, रक्तचाप और पेशियों का संकोच, ये सब बहुत कुछ बहिस्था भाग पर निर्भर हैं। इस भाग में जो हारमोन बनते हैं उनमें कार्टिसोन, हाइड्रोकार्टिसोन, प्रेडनीसोन और प्रेडनीसोलोन का प्रयोग चिकित्सा में बहुत किया जाता है। बहुत से रोगों में उनका अद्भुत प्रभाव पाया गया है और रोगियों की जीवनरक्षा हुई है। विशेष बात यह है कि ये हारमोन अंतःस्रावी ग्रंथियों के रोगों के अतिरिक्त कई अन्य रोगों में भी अत्यंत उपयोगी पाए गए हैं। कहा जाता है कि यदि क्षयजन्य मस्तिष्कवरणार्ति (ट्यूबर्क्युलर मेनिन्जाइटिस) की चिकित्सा में अन्य औषधियों के साथ कार्टिसोन का भी प्रयोग किया जाए तो लाभ या रोगमुक्ति निश्चित है।

मध्यस्था भाग जीवन के लिए अनिवार्य नहीं है। उसमें ऐड्रिनैलिन तथा नौर ऐड्रिनैलिन नामक हारमोन बनते हैं।

बहिस्था की अतिक्रिया से पुरुषों में स्त्रीत्व के से लक्षण प्रगट हो जाते हैं। उसकी क्रिया के ह्रास का परिणाम ऐडिसन का रोग होता है जिसमें रक्तदाब का कम हो जाना, दुर्बलता, दस्त आना और त्वचा में रंग के कणों का एकत्र होना विशेष लक्षण होते हैं।

अवटुका ग्रंथि (थाइरॉयड

यह ग्रंथि गले में श्वासनाल पर टैटुवे से नीचे घोड़े की काठी के समान स्थित है। इसके दोनों खंड नाल के दोनों और रहते हैं और बीच का, उन दोनों को जोड़नेवाला, भाग नाल के सामने रहता है। इस ग्रंथि में थाइराँक्सीन नामक हारमोन बनता है। इसको प्रयोगशालाओं में भी तैयार किया गया है। इसका स्त्राव पीयूषिका के अवटुकापोषक हारमोन द्वारा नियंत्रित रहता है। यह वस्तु मौलिक चयापचय गति (बेसल मेटाबोलिक रेट, बी.एम.आर.), नाड़ीगति तथा रक्तदाब को बढाती है। इस ग्रथिं की अतिक्रिया से मौलिक चयापचय गति तथा नाड़ी की गति बढ जाती है। ह्रदय की धड़कन भी बढ़ जाती है। नेत्र बाहर निकलते हुए से दिखाई पडते हैं। ग्रथिं में रक्त का संचार अधिक हो जाता है। ग्रंथि की क्रिया के कम होने से बालकों में वामनता (क्रेटिनिज्म) की और अधिक आयुवालों में मिक्सोडीमा की दशा उत्पन हो जाती है। वामनता में शरीर की वृद्धि नहीं होती। 15-20 वर्ष का व्यक्ति सात आठ वर्ष का सा दिखाई पड़ता है। बुदिध का विकास भी नहीं होता। पेट आगे को बढा हुआ, मुख खुला हुआ और उससे राल चूती हुई तथा बुदिध मंद रहती है। मिक्सोडीमा में हाथ तथा मुख पर वसा (चर्बी एकत्र हो जाती है, आकृति भारी या मोटी दिखाई देती है। ग्रंथि के सत्व (एक्सट्रैक्ट) खिलाने से ये दशाएँ दूर हो जाती हैं।

उपावटुका (पैराथाइराँयड

ये चार छोटी-छोटी ग्रंथियाँ होती हैं। अवटुका ग्रंथि के प्रत्येक खंड के पृष्ठ पर ऊपर और नीचे के ध्रुवों के पास एक-एक ग्रंथि स्थित रहती है और उससे उसका निकट संबंध रहता है। इन ग्रंथियों का हारमोन कैल्सियम के चयापचय का नियंत्रण करता है। कैल्सियम के स्वांगीकरण के लिए यह हारमोन आवश्यक है। इसकी प्रतिक्रिया से कैल्सियम, फास्फेट के रूप में, मूत्र द्वारा अधिक मात्रा में निकलने लगता है जिससे अस्थियाँ विकृत हो जाती हैं और औस्टिआइटिस फ़ाइब्रोसा नामक रोग हो जाता है। इसकी क्रिया कम होने पर टेटैनी रोग होता है।

प्रजनन ग्रंथियाँ

प्रजनन ग्रंथियाँ दो हैं, अंडग्रंथि (टेस्टीज़) और डिंबग्रंथि (ओवैरी)। पहली ग्रंथि पुरुष में होती है और दूसरी स्त्री में।

अंडग्रंथि

अंडकोष में दोनों ओर एक-एक ग्रंथि होती है। इस ग्रंथि की मुख्य क्रिया शुक्राणु उत्पन्न करना है जिससे संतानोत्पत्


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