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ACS Saral Sanjivani - Dr. Sarla Parekh Book - Hindi

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Price : 70

Product Details

I. Code
282
Width
14 cm
Length
22 cm
Height
2 cm
Weight
300 gm
Hsn Code
4901
QTY in Per Box
5
Quantity

Product Description

स्वास्थ्य शिक्षा



लोगों को के सभी पहलुओं के बारे में शिक्षित करना स्वास्थ्य शिक्षा (Health Education) कहलाती है। स्वास्थ्य शिक्षा ऐसा साधन है जिससे कुछ विशेष योग्य एवं शिक्षित व्यक्तियों की सहायता से जनता को स्वास्थ्यसंबंधी ज्ञान तथा  एवं विशिष्ट व्याधियों से बचने के उपायों का प्रसार किया जा सकता है।

विस्तृत अर्थों में स्वास्थ्य शिक्षा के अन्तर्गत  का स्वास्थ्य, दैहिक स्वास्थ्य (physical health), सामाजिक स्वास्थ्य, भावात्मक स्वास्थ्य, बौद्धिक स्वास्थ्य, तथा आध्यात्मिक स्वास्थ्य सभी आ जाते हैं। स्वास्थ्य शिक्षा के द्वारा ही व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह ऐसा बर्ताव करता है जो स्वास्थ्य की उन्नति, रखरखाव और पुनर्प्राप्ति में सहा

स्वास्थ्य शिक्षा के द्वारा जनसाधारण को यह समझाने का प्रयास किया जाता है कि उसके लिए क्या स्वास्थ्यप्रद और क्या हानिप्रद है तथा इनसे साधारण बचाव कैसे किया जाय। संक्रामक रोगों जैसे  इत्यादि के टीके लगवाकर हम कैसे अपनी सुरक्षा कर सकते हैं। स्वास्थ्य शिक्षक ही जनता से संपर्क स्थापित कर स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा स्वास्थ्यसंबंधी आवश्यक नियमों का उन्हें ज्ञान कराता है। इस योजना से लोग यथाशीघ्र स्वास्थ्यरक्षासंबंधी नियमों से परिचित हो जाते हैं। स्वास्थ्य शिक्षा से तत्काल लाभ पाना कठिन होता है क्योंकि इसमें अधिकतर समय स्वास्थ्य शिक्षक का लोगों का विश्वास प्राप्त करने में लग जाता है।

चिकित्साक्षेत्र में कार्य करनेवाले प्रत्येक व्यक्ति को रोगोपचार के अतिरिक्त किसी न किसी रूप में स्वास्थ्य शिक्षक के रूप में भी कार्य करने की क्षमता रखनी पड़ती है। 'स्वास्थ्य शिक्षा' का कार्य कभी भी स्वतंत्र रूप से नहीं चल सकता। यह हमेशा 'शिक्षा विभाग' एवं 'स्वास्थ्य विभाग' के संयुक्त उत्तरदायित्व पर ही चलता है। इसका सफलतापूर्वक प्रसार स्वयंसेवकों द्वारा होता है। स्वास्थ्य स्वयंसेवकों के लिए यह आवश्यक है कि वे आधुनिकतम स्वास्थ्य एवं चिकित्सा संबंधी ज्ञान से अपनी योग्यता बढ़ाते रहें जिससे उस ज्ञान का सही स्थान पर उचित रूप से स्वास्थ्य शिक्षा के अंतर्गत जनता के लाभार्थ पसार एवं उपयोग कर सकें।

स्वास्थ्य शिक्षा की विधि
स्वास्थ्य शिक्षा की तीन प्रमुख विधियाँ हैं जिनमें दो विधियों में तो चिकित्सक की आंशिक आवश्यकता पड़ती है परंतु तीसरी स्वास्थ्य शिक्षक के ही अधीन है। ये तीनों विधियाँ इस प्रकार हैं -

१ - स्कूलों एवं कालेजों के पाठ्यक्रमों में स्वास्थ्य शिक्षा का समावेश। इसके अंतर्गत निम्नलिखित बातें आती हैं : -

(क) व्यक्तिगत स्वास्थ्य तथा व्यक्ति एवं पारिवारिक स्वास्थ्य की रक्षा तथा लोगों को स्वास्थ्य के नियमों की जानकारी करना।

(ख) संक्रामक रोगों की धातकता तथा रोगनिरोधन के मूल तत्वों का लोगों को बोध कराना।

(ग) स्वास्थ्य रक्षा के सामूहिक उत्तरदायित्व को वहन करने की शिक्षा देना।

इस प्रकार में स्कूलों में स्वास्थ्य शिक्षा प्राप्त कर रहा छात्र आगे चलकर सामुदायिक स्वास्थ्यसंबंधी कार्यों में निपुणता से कार्य कर सकता है तथा अपने एवं अपने परिवार के लोगों की स्वास्थ्य रक्षा के हेतु उचित उपायों का प्रयोग कर सकता है। अनुभव द्वारा यह देखा भी गया है कि इस प्रकार की स्कूलों में स्वास्थ्य शिक्षा से संपूर्ण देश की स्वास्थ्य रक्षा में प्रगति हुई है।

२ - सामान्य जनता को स्वास्थ्यसंबंधी सूचना देना - यह कार्य मुख्य रूप से स्वास्थ्य विभाग का है परंतु अनेक ऐच्छिक स्वास्थ्य संस्थाएँ एवं अन्य सस्थाएँ जो इस कार्य में रुचि रखती हैं, सहायक रूप से कार्य कर सकती हैं। इस प्रकार की स्वास्थ्य शिक्षा का कार्य आजकल, रेडियो, समाचारपत्रों, भाषणों, सिनेमा, प्रदर्शनी तथा पुस्तिकाओं की सहायता से यथाशीघ्र संपन्न हो रहा है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी उपकरणों का भी प्रयोग करना चाहिए। जिससे अधिक से अधिक जनता का ध्यान स्वास्थ्य शिक्षा की ओर आकर्षित हो सके। इसके लिए विशेष प्रकार के व्यवहारकुशल और शिक्षित स्वास्थ्य शिक्षकों की नियुक्ति करना श्रेयस्कर है।

३ - उन लोगों से स्वास्थ्य शिक्षा दिलाना जो रोगियों की सेवा सुश्रूषा तथा अन्य स्वास्थ्यसंबंधी कार्यों में निपुण हों।

यह कार्य स्वास्थ्य चर (Health visitor) बड़ी कुशलता से कर सकता है। प्रत्येक रोगी तथा प्रत्येक घर जहाँ चिकित्सक जाता है वहाँ किसी न किसी रूप में उसे स्वास्थ्य शिक्षा देने की सदा आवश्यकता पड़ा करती है अत: प्रत्येक चिकित्सक के स्वास्थ्य शिक्षा चिकित्सक के प्रमुख अंग के रूप में ग्रहण करना चाहिए। इस तरह से कोई भी स्वास्थ्य चर, स्वास्थ्य शिक्षक (Health Educator) तथा चिकित्सक जनता की निम्नलिखित प्रकार से सेवा कर सकता है :

(क) रोग के संबंध में रोगी के भ्रमात्मक विचार तथा अंधविश्वास को दूर करना।

(ख) रोगी का रोगोपचार, स्वास्थ्य रक्षक तथा रोग के समस्त रोगनिरोधात्मक उपायों का ज्ञान करा सकता।

(ग) अपने ज्ञान से रोगी को पूरा विश्वास दिलाना जिससे रोगी अपनी तथा अपने परिवार की स्वास्थ्य रक्षा के हेतु उनसे समय समय पर राय ले सके।

(घ) रोग पर असर करनेवाले आर्थिक एवं सामाजिक प्रभावों का भी रोगी के बोध करावे तथा एक चिकित्सक, उपचारिका, स्वास्थ्य चर तथा इस क्षेत्र में कार्य करनेवाले स्वयंसेवकों की कार्यसीमा कितनी है, इसका लोगों को बोध कराना अत्यंत आवश्यक है।

इस प्रकार से दी गई शिक्षा ही सही स्वास्थ्य शिक्षा कही जा सकती है और उसका जनता जनार्दन के लिए सही और प्रभावशाली असर हो सकता है।


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